- purnendu sinha pushpesh
भारत में आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक विविधता और उनकी पारंपरिक कलाएं न केवल देश की धरोहर हैं, बल्कि ग्रामीण और वंचित समुदायों के लिए रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण साधन भी बन सकती हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों जैसे क्षेत्र आदिवासी जनसंख्या से समृद्ध हैं। इन क्षेत्रों में चित्रकला, शिल्पकला, वस्त्र कला, संगीत, नृत्य और लोककथाओं की समृद्ध परंपरा मौजूद है। यदि इन पारंपरिक कलाओं का व्यवस्थित विकास और विपणन किया जाए, तो यह स्थानीय लोगों के लिए सतत आजीविका का सशक्त माध्यम बन सकता है।
आदिवासी कलाओं की विविधता
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लगभग 10.4 करोड़ (104 मिलियन) आदिवासी जनसंख्या है, जो कुल जनसंख्या का 8.6% है। यह समुदाय मुख्यतः प्राकृतिक संसाधनों और हस्तकला पर निर्भर रहता है। प्रमुख आदिवासी कलाएं निम्नलिखित हैं:
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सोहराई और कोहवर चित्रकला (झारखंड)
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गोंड चित्रकला (मध्यप्रदेश)
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साँझी कला और मधुबनी चित्रकला (बिहार)
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डोकरा धातुशिल्प (छत्तीसगढ़ और झारखंड)
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वारली चित्रकला (महाराष्ट्र)
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बस्तर शिल्प (छत्तीसगढ़)
इन कलाओं में प्राकृतिक रंगों, लोककथाओं, जीवनशैली और देवी-देवताओं का सुंदर समावेश होता है।
रोजगार सृजन की संभावनाएं
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हस्तशिल्प और हस्तकला बाजार में वृद्धि
भारत सरकार के अनुसार, हस्तशिल्प क्षेत्र में लगभग 68.86 लाख कारीगर (2022 के आंकड़े) पंजीकृत हैं। आदिवासी हस्तकला उत्पादों की मांग न केवल घरेलू बाजार में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी तेजी से बढ़ रही है।
“कला सिर्फ अभिव्यक्ति नहीं, यह आजीविका का भी आधार बन सकती है।” — श्री नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, ‘मन की बात’ (2020)
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पर्यटन से जुड़ा रोजगार
सांस्कृतिक पर्यटन और इको-टूरिज्म जैसे क्षेत्रों में आदिवासी कला का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। झारखंड के श्रृंगी ऋषि उत्सव और सरहुल जैसे पर्वों में आने वाले पर्यटकों के लिए लोककला और हस्तशिल्प आकर्षण का केंद्र होते हैं। -
कौशल विकास और प्रशिक्षण
जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा संचालित TRIFED (Tribal Cooperative Marketing Development Federation) जैसी संस्थाएं आदिवासी कारीगरों को प्रशिक्षण, विपणन और वित्तीय सहायता प्रदान कर रही हैं। TRIFED के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में 50,000 से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षण दिया गया। -
ई-कॉमर्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स
TRIFED द्वारा संचालित Tribes India ई-कॉमर्स पोर्टल पर आदिवासी उत्पादों की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2024-25 में इनकी कुल बिक्री ₹200 करोड़ के पार जाने की उम्मीद है।
चुनौतियां
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बाज़ार तक पहुंच की कमी
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बिचौलियों की भूमिका और शोषण
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आधुनिकता के प्रभाव से पारंपरिक कलाओं का क्षरण
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वित्तीय सहायता की सीमितता
समाधान और सुझाव
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प्रशिक्षण और नवाचार — नई तकनीकों और डिज़ाइन की जानकारी देकर उत्पादों को आधुनिक बाजार के अनुरूप बनाया जा सकता है।
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ईको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स पर ज़ोर — वैश्विक स्तर पर इको-फ्रेंडली उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जिसे आदिवासी कारीगर पूरा कर सकते हैं।
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सहकारी समितियों का गठन — कारीगरों की सामूहिक शक्ति से बिचौलियों पर निर्भरता कम की जा सकती है।
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स्थानीय प्रदर्शनियों और मेलों का आयोजन — ‘आदि महोत्सव’ जैसे मेलों के जरिए स्थानीय कारीगरों को बाजार मिल सकता है।
“Tribal art is not just art; it is a story of sustainability, heritage, and hope for livelihoods.” — Padma Shri Jangarh Singh Shyam (गोंड चित्रकला के प्रणेता)
आदिवासी कला और संस्कृति के संरक्षण के साथ-साथ यदि इसे आर्थिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह रोजगार सृजन का सशक्त साधन बन सकता है। सरकार, गैर-सरकारी संस्थाएं और निजी क्षेत्र मिलकर इस दिशा में कार्य करें तो यह न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोएगा, बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका को भी मजबूती देगा।
“जब तक गांव का कारीगर समृद्ध नहीं होगा, तब तक राष्ट्र समृद्ध नहीं हो सकता।” — महात्मा गांधी
संदर्भ (References)
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भारत सरकार, जनगणना 2011 रिपोर्ट
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TRIFED Annual Report 2022–23
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Ministry of Textiles, Government of India, Handicraft Statistics 2023
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‘मन की बात’ कार्यक्रम, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी (2020)
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Padma Shri Jangarh Singh Shyam, Gond Art Archives
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India Exim Bank Report on Handicrafts Exports (2022)